Friday, December 17, 2010

चिरमुक्त प्यार की नई कोपलें




 
कैसे जुड़ते जाते हैं
सारे सन्दर्भ
एक केंद्र से
सुन्दर समन्वय बनाते
नई आभा जगाते
श्रद्धा के तार झंकृत कर
मधुर मौन में ले जाते

सन्दर्भ
जिनमें एक अंतरहित बोध गुनगुनाता है
स्मृतियाँ  
जिनमें परम चरम का आलोक ठहर जाता है

वो सब
घुमावदार रास्ते
पहाड़ की चोटी से
सुन्दर लगते हैं
जिन पर कभी
बेचैन करता था अनिश्चय

यह विहंगम दृश्य
यह क्षितिज तक का विस्तार दिखलाती दृष्टि
चिरमुक्त प्यार की नई कोपलें
यहाँ से 
वहां तक जाती हैं
जहां 
सारे सन्दर्भों में
एक ओजस्वी सूत्र दिखाई देता है

और शब्दों के बीच
उभर आता है
वह अंतराल जिसमें
समाये हैं तीनो काल


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, १७ दिसंबर २०१०

2 comments:

Swarajya karun said...

अच्छी कविता.

प्रवीण पाण्डेय said...

एक केन्द्र से तो अनगिन किरणें निकल सकती हैं बिना एक दूसरे को काटे हुये।

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