और फिर
नए सिरे से
बात तुम्हारी
पलट पलट कर
देखता हूँ
अर्थ अपने होने का,
जहाँ हूँ
वहां भी
निखर आती है पूर्णता
मेरे चारों ओर जो
करती है प्रमाणित
तुम दूर नहीं हो मुझसे
कभी भी
कहीं भी
और होती है आश्वस्ति
मेरे समर्पण की धारा
पहुँच रही है
तुम्हारे चरणों तक
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
25 नवम्बर 2010
1 comment:
भक्ति के समधुर शब्द।
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