Wednesday, November 24, 2010

लो प्रेम रंग सा छिटका है



 
मुझमें एक बात कुवांरी है
जिसको ये दुनिया प्यारी है

अनछुई रहे सबमें मिल कर 
 नूतनता की अधिकारी है
 
मेरी बाँहों में थमी रहे
ये आंधी की लाचारी है
 
 लो प्रेम रंग सा छिटका है 
सुन्दर यह सृष्टि सारी है
 
अपनेपन का सन्देश लिए
मुझमें ये ज्योति तुम्हारी है
ये मौन मधुर सा पसर रहा 
शाश्वत सुख, सांस हमारी है
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, २४ नवम्बर २०१०
 
 
 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

जब तक साँस रहेगी, सुख की आस रहेगी।

सुंदर मौन की गाथा

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