धूप को आईना दिखाया है
उजाला और भी बढाया है
लोग जो भी कहें, सो कहते रहें
मैंने तो बस तुम्हें बुलाया है
एक नज़र का सलाम लेकर ही
आज फिर से कोई शरमाया है
बात खुद तो बड़ी पुरानी है
लहर पे उसका नया साया है
चांदनी का सितार बजता है
कोई धड़कन में गुनगुनाया है
पास में मिटने का अंदेशा है
इसलिए फासला बढ़ाया है
नया लगने लगा है क्यूं फिर से
ये तो किस्सा सुना-सुनाया है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ नवम्बर २०१०, मंगलवार
2 comments:
वाह...भावपूर्ण मर्मस्पर्शी बहुत ही सुन्दर रचना...
हर शेर मन तक पहुँचने में सक्षम हैं...
उफ, गज़ब।
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