लो फिर सहसा
उमड़ गया पावन उजियारा
बह निकली अनायास
चिर प्रसन्नता की धारा
२
लो फिर सहसा
मैंने तुमको पुकारा
जगमगा उठा
बोध जगत सारा
३
आनंद के यह
अनछुए पल
इनमें गाये
अनंत निश्छल
४
एक नाद ऐसा
कण कण कर दे प्यारा
लो फिर सहसा
उमड़ गया पावन उजियारा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ नवम्बर २०१०
2 comments:
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
काश, यह प्रकाश सबको प्राप्त हो।
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