Monday, November 8, 2010

मेरे होने का प्रमाण


अब कविता नहीं लिखता
कविता के बहाने
देखता हूँ
अपने आपको
 
कुछ नए रास्ते
कुछ नए वृक्ष
बहती नदियाँ
पहाड़, आसमान और जंगल
नए नए से
ना जाने कैसे
हुए हैं प्रकट
मेरे भीतर 
मुझे परिवर्तित किये बिना
 
इसी विस्मय के चिन्ह
सहेज कर चेतना से
सजाता हूँ
आनंद की ज्योतिर्मय थाली पर
शब्दों के अनुग्रह से
 
कह लेता हूँ
इसी को कविता
वस्तुतः यह कविता नहीं
मेरे होने का प्रमाण है
 
मेरा होना
एक अपरिवर्तनीय आधार पर
नूतनता का नित्य अनुसंधान है

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ नवम्बर २०१०

4 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत बढ़िया प्रमाण है..

Deepak chaubey said...

मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

प्रवीण पाण्डेय said...

कविता के बहाने आत्मावलोकन में जुट जाता है मन।

meemaansha said...

मेरे होने का प्रमाण है
jo likhte hain jante hain ki yahi unke hone ka prman hai--kavita..

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