अब कविता नहीं लिखता
कविता के बहाने
देखता हूँ
अपने आपको
कुछ नए रास्ते
कुछ नए वृक्ष
बहती नदियाँ
पहाड़, आसमान और जंगल
नए नए से
ना जाने कैसे
हुए हैं प्रकट
मेरे भीतर
मुझे परिवर्तित किये बिना
इसी विस्मय के चिन्ह
सहेज कर चेतना से
सजाता हूँ
आनंद की ज्योतिर्मय थाली पर
शब्दों के अनुग्रह से
कह लेता हूँ
इसी को कविता
वस्तुतः यह कविता नहीं
मेरे होने का प्रमाण है
मेरा होना
एक अपरिवर्तनीय आधार पर
नूतनता का नित्य अनुसंधान है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ नवम्बर २०१०
4 comments:
बहुत बढ़िया प्रमाण है..
मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
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कविता के बहाने आत्मावलोकन में जुट जाता है मन।
मेरे होने का प्रमाण है
jo likhte hain jante hain ki yahi unke hone ka prman hai--kavita..
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