(चित्र-ललित शाह) |
देखता हूँ
वह जो दिखता है
एक दिन मिट जाएगा
पर
वह जो अमिट है
मिटने वाली आँख में तो
वह भी मिट जायेगा
अब तलाश है
ना मिटने वाली दृष्टि की
जिससे जुडी है
उपस्थिति सृष्टि की
जिससे
आनंद का अनाम रस सागर लहराता है
वही
अनंत बोध बन कर मुखरित हो जाता है
पर इस विराट मौन के स्पंदन वही सुन पाता है
जो स्वयं मौन रहने का अभ्यास कर पाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
1 comment:
मौन का स्पंदन,
वृहद नाद लाता है,
जो जगना चाहे,
उसे जगाता है।
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