चलो समेट कर किरणें
चल दिया सूरज
अज्ञात स्थल को
फिर एक बार,
सांझ के साथ
उतरते अँधेरे में पर
ठहरी है
झंकार आनंद की
थिरकता है
संभावनाओं का नया गिटार
अपने आप
एक मधुर धुन से
भरते हुए सारा वातावरण,
इस क्षण
अपने ह्रदय में स्थित
मंगल कामनाओं के नए कोष से
पहुंचा रहा हूँ
तुम्हारे द्वार तक
शुभ भाव
जब फुरसत हो
द्वार खोल कर
कल लेना स्वीकार यह आत्मीय उपहार मेरा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
3 comments:
bahut sundar kavita...
और सुबह जब किरण बाँटता,
जन जीवन को भोर जगाता,
दिनकर वह जलने को प्रस्तुत।
बेहद खूबसूरत भाव्।
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