सवाल एक तो ये है
कि
जो है, जैसा है
वह ऐसा ही बना रह पाये
और ये भी
कि जो है
उससे बेहतर हो सब कुछ
२
सवाल ये है कि
आज
नई किरण
प्रसन्नता कि
कैसे पहुँचाऊँ तुम तक
और ये भी
कि मुझ तक
आने वाली हर रश्मि में
संतोष की चमक कैसे देख पाये
मेरी संवेदना
३
सवाल ये है कि
अमूर्त की मूर्ति बना कर
उसे कण कण में जाग्रत करने का अनुष्ठान
जो चलता है
मेरी साँसों में निरंतर
इसकी पावनता
बनी रही कैसे
सुबह सुबह
सवालों के पुष्प बना कर
द्वारकानाथ की देहरी पर रख
कृतकृत्य हुआ
मैं
छोड़ कर अपने को
बन रहा प्रवाह
शुद्ध आभा का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ सितम्बर २०१०
1 comment:
सुन्दर रचना।
Post a Comment