चेहरा पोत कर
खाली रंगमंच में
अकेले
बीती हुई कामनाओं का
अभिनय करते हुए
गहराता है अहसास
कि
जो कुछ पुराना था
वो अब
नया होकर
बना हुआ है आस-पास
हम जिस जिस तरह से
संदर्भो को अपनाते हैं
उसी के अनुसार
नए, पुराने
और पुराने, नए हो जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० सितम्बर २०१०
1 comment:
दार्शनिक सेतु नये पुराने के बीच।
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