अपने आप उतर आया उजाला
खिल गया घर आँगन
महक आत्मीयता की
पसर कर
फैलने लगी खिड़की से बाहर
प्रेम की पुलक सुनकर
फुदकती चिड़िया ने
सुनाया गीत उल्लास का
सौंदर्य एक नया सा
निखर आया बस्ती में
वृक्ष यह
मिलने-मिलाने के सार की
जड़ों वाला
उग सकता है
हर मन में
हर घर में
आओ
आलोक वृक्ष लगाने का
नया अभियान छेड़ दें
दे दें प्रमाण
अपनी और आने वाली पीढ़ी को
मानवता बंजर नहीं है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, १ सितम्बर 2010
1 comment:
भगवान करे, मानवता लहलहाती रहे।
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