1
सत्य इस क्षण का
चुपचाप
देखता है
मेरी ओर
ऐसे
जैसे
बच्चे को खेलते हुए
देखती है माँ
२
सत्य इस क्षण का
नहीं अधीर कि मैं
करूँ अभिव्यक्त उसे
ना उसे इस बात से सरोकार
कि
मेरे द्वारा हो उसकी जय जयकार
सत्य
सम्पूर्ण है अपने आप में
रमा हुआ अपने सीमारहित स्वरुप में
मैं
इस क्षण के सत्य को
सम्पूर्ण सत्य से अलग करके देखता हूँ जो
मेरी इस नादानी पर भी
करूणामय मुस्कान लुटाता है
एक वह जो सत्यस्वरूप
उससे संवाद के लिए
मौन हो जाना चाहिए मुझे
पर
बोलना सीखने के बाद
भूल सा गया हूँ
चुप होना
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ३१ अगस्त 2010
3 comments:
ओह ! सच कह दिया………………गज़ब की प्रस्तुति कुछ कहते नही बन रहा।
बड़ा कठिन कार्य है चुप रह पाना।
kanha the itne din bandhoo..........
kitnee sahjata se gahree baat kah jate ho........
blog par aakar bahut accha lag raha hai.......
Aabhar
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