Monday, August 30, 2010

चाहे पतझड़ हो या सावन


 
संकेत जो भी थे
गलत पढ़ गया
विपरीत दिशा में
आगे बढ़ गया
 
पलटते हुए 
बीत गया एक जीवन
पर इस तरह
विस्तृत हो गया मन

और हर मौसम में
गुनगुनाना सीख गया मन
सब कुछ सुहाना लगता है
चाहे पतझड़ हो या सावन

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० अगस्त २०१०, सोमवार

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सदाबहारी व्यक्तित्व ही खिल पाता है, नहीं तो ऋतुओं का ग्रहण लग जाता है।

Ashok Vyas said...

kyaa baat hai Praveenji, bahut achchhe

Apanatva said...

insaan vipreet disha me chala jae tabhee to seekh pata hai........kahte hai na dhara pravah ke sath bahe to doobane ka khatra ho jata hai..........
ati sunder abhivykti.Praveen acchee comments dete hai.......:)

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