संकेत जो भी थे
गलत पढ़ गया
विपरीत दिशा में
आगे बढ़ गया
पलटते हुए
बीत गया एक जीवन
पर इस तरह
विस्तृत हो गया मन
और हर मौसम में
गुनगुनाना सीख गया मन
सब कुछ सुहाना लगता है
चाहे पतझड़ हो या सावन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० अगस्त २०१०, सोमवार
है कुछ बात दिखती नहीं जो पर करती है असर ऐसी की जो दीखता है इसी से होता मुखर है कुछ बात जिसे बनाने बैठता दिन -...
3 comments:
सदाबहारी व्यक्तित्व ही खिल पाता है, नहीं तो ऋतुओं का ग्रहण लग जाता है।
kyaa baat hai Praveenji, bahut achchhe
insaan vipreet disha me chala jae tabhee to seekh pata hai........kahte hai na dhara pravah ke sath bahe to doobane ka khatra ho jata hai..........
ati sunder abhivykti.Praveen acchee comments dete hai.......:)
Post a Comment