1
देखते-देखते
बहती नदी
रेत के टीलों को
कर देती है समतल,
बहाव में
सम का सौंदर्य
प्रकट हो जाता
पल पल
2
खोने-पाने के झूले
से उतर कर
एक कोई
मद्धम सुर में
साँसों का मधुर गीत
सुनता- सुनाता है
और
बहते बहते
समन्वय का सुन्दर स्वर
फ़ैल फ़ैल कर
सृष्टि का सार दिखाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ अगस्त २०१०
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