Saturday, July 17, 2010

कैसा रिश्ता है उम्मीद से मेरा


सुबह से शाम तक
एक बगूला सा उठता है
एक लहर ऐसी
जिसको किनारा नहीं 
असमान को छू लेने की जिद है
और मैं
चारो दिशाओं में
तलाशता फिरता
वो छडी
जिससे छूकर 
शांति कर दूं इस लहर को


लहर में 
शामिल है
वो सब जो दिखा
पर उससे ज्यादा वो
जो रह गया अनदेखा
वो सब जो हुआ
पर उससे ज्यादा वो
जो रह गया अनहुआ
लहर में
छुपी है
एक छटपटाहट 
और
अपने आपको 
फिर से सहेजने, संवारने
सँभालने की चाहत
ये कौन है
जो बदल कर
'सही होने का अर्थ'
सहसा
बड़ा सा प्रश्न चिन्ह लगा कर
मेरे अस्त्तित्व पर
छोटा सा
कर देता है मुझे
 
रेगिस्तान के 
एक अंदरूनी हिस्से में
होठों पर जमी पपड़ी से
रेत हटाता
दूर
मरीचिका देख कर
मुस्कुराता
हांफता
गिरता
चुपचाप
विराट रक्षक के आगे
गिड़गिड़ाता
पर 
हार मानते-मानते
फिर एक बार
चलने लगता
थका-थका लड़खडाता
कैसा रिश्ता है
उम्मीद से मेरा
इसे कभी 
छोड़ नहीं पाता

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, १७ जुलाई २०१०

 

12 comments:

vandana gupta said...

उम्मीद का दामन थाम कर ही तो इंसान ज़िन्दगी गुज़ार जाता है।
आस तो रहती है ना बस इतना ही काफ़ी होता है जीने के लिये।
आपने के बेहद सशक्त रचना लिखी है…………………छटपटाहट का जिस तरह निरूपण किया है वो काबिल-ए-तारीफ़ है।

Jandunia said...

शानदार पोस्ट

राजेश उत्‍साही said...

आपकी कविता में आपका द्वंद्व नजर आता है।

प्रवीण पाण्डेय said...

उम्मीद की डोर पतली है पर कभी टूटने नहीं पाती है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 19 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

इस रचना को लिया गया है....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार २० जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

दिनांक गलत छप गयी थी

सूर्यकान्त गुप्ता said...

बहुत सुन्दर रचना व्यास जी। अमेरिका में रह फैला रहे हैं चंहु ओर अपनी रचना का प्रकाश जी। बहुत सुन्दर।

अनामिका की सदायें ...... said...

सुंदर रचना.

वीना श्रीवास्तव said...

लहर में
शामिल है
वो सब जो दिखा
पर उससे ज्यादा वो
रह गया अनदेखा
सुंदर पंक्तियां

रचना दीक्षित said...

हार मानते-मानते
फिर एक बार
चलने लगता
थका-थका लड़खडाता
कैसा रिश्ता है
उम्मीद से मेरा
इसे कभी
छोड़ नहीं पाता

बहुत ही सुन्दर रचना

नीरज गोस्वामी said...

उम्मीद है तभी जीवन है...बहुत शशक्त रचना है आपकी..बधाई
नीरज

Er. सत्यम शिवम said...

बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

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