Tuesday, July 13, 2010

पर सूरज है मुझमें


इस क्षण
और कुछ नहीं
सृजन बिंदु को टटोलते हुए
अपने 'स्व' को पूरी तरह
इस एक धुरी पर टिका कर
पूछ रहा 
उस मौन का पता
जहां
ना कोई प्रश्न, ना कोई उत्तर
ना कोई थपथपाहट
ना द्वार खोलने की आतुरता

विश्रांति की चिर-छाया में
सहज विस्तार की पावन अनुभूति
और 
ऐसा होना
जो रहता है
कुछ ना होते हुए भी
और सब कुछ होते हुए भी
उस प्रभाव से परे के
शुभ्र रूप में
घुल मिल
शब्द पंखों संग
जब उड़ रहा हूँ
स्वतः स्फूर्त है
सब तक पहुंचता 
प्यार का कोमल उजाला 
मैं सूरज नहीं हूँ
पर सूरज है मुझमें

अशोक व्यास
न्यूयार्क,अमेरिका
सुबह ७ बज कर ५५ मिनट 
मंगलवार, १३ जुलाई २०१०

4 comments:

vandana gupta said...

बेहतरीन भावाव्यक्ति।

Dr.J.P.Tiwari said...

अपने 'स्व' को पूरी तरह
इस एक धुरी पर टिका कर
पूछ रहा
उस मौन का पता
जहां
ना कोई प्रश्न, ना कोई उत्तर
ना कोई थपथपाहट
ना द्वार खोलने की आतुरता
bahut hi sundar parikaloana. yatharth ke sannikat ki sthiti, "Saalokyy Awastha" ki anubhuti karati rachna. Thanks.

प्रवीण पाण्डेय said...

इस हल्केपन के क्षण आते रहें जीवन में।

M VERMA said...

सुन्दर्

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