Wednesday, June 23, 2010

जो देख नहीं पाते अपनी परछाई



हमने ऐसी व्यवस्था बनाई है
जो दुश्मन के मन भाई है
हमारी दावतों में शामिल होकर
उसने अपनी ताकत बढाई है

क्यूं हर बार, दुश्मन का सन्देश
इस तरह हमारे घर-आंगन तक आता है
कि अपने ही लोगो की आँखों में
धुआं सा भर जाता है

क्या बात है, कि हर बार
अधूरी रह जाती है हमारी तैय्यारी
हम उन्हें साथ लिए हैं अपने
जो दुश्मन की करते हैं तरफदारी


युद्धभूमि पर चलते चलते
जो देख नहीं पाते अपनी परछाई
कितना सही है उनका ये दावा 
कि वो हैं सत्य के सिपाही


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ४० मिनट 
जून २२, २०१०, बुधवार

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