Tuesday, June 15, 2010

शाश्वत की गाथा


सारे दिन के क्रिया कलाप
जैसे किसी गीत का आलाप

एक माधुर्य की तैय्यारी 
समन्वय में सृष्टि सारी

हर उतार-चढ़ाव, हर हल-चल में
एक वही है विद्यमान
जैसे जैसे बढ़ता जाता है
इस तरफ अपना ध्यान

कर्म सुन्दर खेल हो जाता है
अच्युत से मन का मेल हो जाता है

जो आता है, उसके वैभव की झलक दिखलाता
यूँ लगता है, खिलती है साँसों में  शाश्वत की गाथा 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
सुबह ६ बज कर ३५ मिनट पर
मंगलवार, १६ जून २०१०


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