जैसे किसी गीत का आलाप
एक माधुर्य की तैय्यारी
समन्वय में सृष्टि सारी
हर उतार-चढ़ाव, हर हल-चल में
एक वही है विद्यमान
जैसे जैसे बढ़ता जाता है
इस तरफ अपना ध्यान
कर्म सुन्दर खेल हो जाता है
अच्युत से मन का मेल हो जाता है
जो आता है, उसके वैभव की झलक दिखलाता
यूँ लगता है, खिलती है साँसों में शाश्वत की गाथा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ३५ मिनट पर
मंगलवार, १६ जून २०१०
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