सत्य निर्वात नहीं
ना ही पतझड़
ना ही बसंत
सत्य
वो है
जिसका नहीं
हो सकता अंत
सत्य
सृजनशीलता के
कई रूप लेकर आता है
आत्म-सौंदर्य से
समन्वय बनाने का
पाठ पढ़ता है
सत्य
अपार वैभव को
सुलभ करवाता है
और साथ
साथ ये भी बताता है
कि
सबसे बड़ा कोष वो है
जिसका द्वार
भीतर से खुल पाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर २५ मिनट
रविवार, जून १३, २०१०
1 comment:
बिल्कुल सही कहा………………आत्मबोध के लिये तो भीतर ही उतरना पडता है।
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