Sunday, June 13, 2010

सत्य निर्वात नहीं


सत्य निर्वात नहीं
ना ही पतझड़
ना ही बसंत
सत्य
वो है
जिसका नहीं 
हो सकता अंत

सत्य
सृजनशीलता के
कई रूप लेकर आता है
आत्म-सौंदर्य से
समन्वय बनाने का
पाठ पढ़ता है

सत्य
अपार वैभव को
सुलभ करवाता है
और साथ
साथ ये भी बताता है
कि 
सबसे बड़ा कोष वो है
जिसका द्वार 
भीतर से खुल पाता है 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर २५ मिनट
रविवार, जून १३, २०१०

1 comment:

vandana gupta said...

बिल्कुल सही कहा………………आत्मबोध के लिये तो भीतर ही उतरना पडता है।

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