ये दुनिया दिनों दिन
पहचान के फ्रेम को चुनौती देती है
समझ के बाहर
नया कुछ
अच्छा भी, बुरा भी
होता है
दिखता है
कभी पढने में आता है
कभी अनुभव में आता है
जगत उतना ही नहीं
जितना मैंने जाना था
दुनिया का सीमित ज्ञान लेकर
अपनी इस छोटी समझ से
असीम की बात करता हूँ
जैसे कोई
छोटी सी नौका लेकर
लहरों की सवारी करता
इस आश्वस्ति के साथ
कि
सागर से ही नहीं
किनारे से भी उसका
आत्मीय सम्बन्ध है कोई गहरा
इतना गहरा की
छिछली समझ की परिधि से
परे रह जाता है
हमेशा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ जून २०१०
सुबह ८ बज कर २ मिनट
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