प्रथम चरण
वही एक पथ
दिन दिन
नूतन, सुन्दर, मंगल
यहीं बैठ
सुनती है
मधुर नदी की कल-कल
२
दूसरा चरण
एक वह बिंदु
जिसमें से
प्रकट होता है सिन्धु
स्वर्णिम विस्मय
छुपा कर
मौन मगन
मद्धम मुस्कान से
सृजनात्मक स्वर लिए
खिलखिला कर
रचनात्मक विस्तार से
दिखलाता है
एक झलक विराट की
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
प्रथम खंड- ११ जून २०१०
दूसरा चरण- मई ३०, २०१०
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