Monday, June 7, 2010

विस्तार के नाम पर




१ 
अब बंद स्नानघर में
नहाते नहाते
ये सच लगने लगा है
कि
जो नदी में
खुल कर नहाता है
वो स्वच्छ नहीं हो पाता है


प्रकृति से जोड़ते 
अनुभवों को हम अस्थाई खेल
मानने लगे हैं 
सीधे सीधे नहीं
टीवी के द्वारा मौसम को
जानने लगे हैं


विस्तार के नाम पर
हमें अपना घर परिवार ही दिख पाता है
वो शख्स जो
सारे संसार में निश्छल प्रेम लुटाता है
उसका स्वभाव 
अब हमारी समझ में नहीं आता है
ना जाने कैसी प्रगति है
जिससे हर मनुष्य सिमटता जाता है


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर १७ मिनट
सोमवार, ७ जून २०१०

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