लौटने से पहले
पूछा था उसने
एक बार और
वही सवाल
और
फिर एक बार
मैंने दिया था
वही जवाब
फिर भी
बदल गए थे
हम दोनों
२
बदलाव
सवालों और जवाबों के बीच
किसी चुपचाप पगडंडी से
चला आता है
अनायास
तब जब हम
कुछ नहीं कर रहे होते जानते बूझते
करवट अनंत की
इस तरह
व्यवस्थित करती है
भीतर से हमें कि
नया नया हो जाता है संसार
अशोक व्यास
सुबह ४ बज कर ६ मिनट पर
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, जून ४, 2010

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