Thursday, May 6, 2010

अनंत आयामों की गाथा

(ओढ़नी बदले अम्बा, नई ऋतु आये                    चित्र - अशोक व्यास )

यह क्या है
जो दिन को
सार्थक बना देता है
कभी स्थितियों को बदल कर,
कभी उन्ही सब
घटनाओं में
नए रंगों की शोभा छिड़क कर

लहलहाती फसल जैसे
मन में 
यह जो
संतोष और आनंद के
स्वर्णिम, पावन पत्ते से झरे हैं 

बताओ कैसे
सुरक्षित रखूँ माँ 
इस संपदा को 




माँ
कभी गोद में लेकर उछालती है
कभी बहलाती है
खिलौना देकर 

बांधती है माँ
मुक्त करने के लिए 

जाने पहचाने रास्तों पर 
मिलता है जब 
चिर-स्वतंत्रता का स्वाद,
नहीं जानते
कैसे संभाले
कहाँ सुरक्षित रखें 
असीम की इस अनुभूति को,

और ऐसे में
फिर एक बार
करते हैं माँ की पुकार

याद आ ही जाती है माँ
कभी कुछ ना होने पर
कभी सब कुछ होने पर

जीवन के हर मोड़ पर 
अम्बा का स्मरण 
ये बताता है
कि माँ के आलिंगन में
अनंत आयामों की गाथा है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ५० मिनट
गुरुवार, ६ मई २०१०

1 comment:

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर रचनाएं,

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...