धुंए के पार
देखने की कोशिश
होती है जब नाकाम
हम
अनुमान लगा कर
चला लेते हैं काम
इतनी दूरी पर एक पेड़,
दूर दिखाई देता पहाड़
और एक मोड़
यहीं कहीं आस पास,
सब कुछ सोच कर
अनुमान के आधार पर
बिठाने लगते हैं
अपना विश्वास,
पर इस अनुमान जनित विश्वास में
शेष रह जाती संशय की एक दरार,
और तब धीरे धीरे चलते हुए
विराट तक भेजते हैं उजाले की पुकार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ५ बज कर ५५ मिनट
सोमवार, ३ मई २०१०
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