Monday, May 3, 2010

उजाले की पुकार


धुंए के पार
देखने की कोशिश 
होती है जब नाकाम 
हम
अनुमान लगा कर
चला लेते हैं काम

इतनी दूरी पर एक पेड़,
दूर दिखाई देता पहाड़
और एक मोड़
यहीं कहीं आस पास,
सब कुछ सोच कर
अनुमान के आधार पर
बिठाने लगते हैं
अपना विश्वास,

पर इस अनुमान जनित विश्वास में
शेष रह जाती संशय की एक दरार,
और तब धीरे धीरे चलते हुए 
विराट तक भेजते हैं उजाले की पुकार 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ५ बज कर ५५ मिनट
सोमवार, ३ मई २०१०

No comments:

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...