परकोटे के चारों ओर
घूम घूम कर
ढूंढते हैं
प्रवेश द्वार
कई बार
बंद किले के
जब हमें देखना होता है
सूरज को
सूरज को किले में
बंद कर
ताले की चाबी
छुपाई होती है
अपने ही दिल में
और दिल के द्वार की
चाबी
कहीं रख कर
भूल जाते हैं
२
बात अपने
ही भीतर उतरने की
होती है
जब जब भी
हम उजाले के लिए
तड़पते हैं
कसमसाते हैं
और अपने
चारों ओर
घूम घूम कर
हम ढूंढते हैं
जो प्रवेश द्वार
कई बार
उसे छुपाये होता है
हमारा
अहंकार
३
एक समय ऐसा भी आता है
जब समझ थक कर
सुस्ताने चली जाती है
कोई पागल पवन
हमें उठा कर
झूला सा झुलाती है
तब जब
अपने आप पर
नहीं होता हमारा अधिकार
उछाल से पवन की
हम इस पार गिरें या उस पार
इसके निर्णय का
है जिस पर दारोमदार
वो ही दे सकता है
सारयुक्त सतत विस्तार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ९ बज कर १० मिनट
रविवार, मई २, २०१०
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