Tuesday, April 27, 2010

एक सौम्य चौकन्नापन

(सुनते जब सूरज की बात, आ जाता दिन- जाती रात                चित्र - अशोक व्यास )

स्मृति चुराने वाला
बैठा होता है
भीतर ही
इस ताक में
कि 
ज़रा ध्यान चूके
और ले जाकर
छुपा दे 
हमारी हमें
पहचान पाने की ताकत


खेल स्मृति बचाने का
दरअसल खेल है
अपनी ही सुरक्षा का

सुरक्षित रहने की कोशिश
कभी कभी
छल लेती है हमें

हम अपने आपको नहीं
अपने 
एक 'आभास' को बचाने में
पूरा जोर लगा देते हैं


'आभास' से परे
खुद को देख पाने के लिए
चाहिए सतर्कता 

संतुलित सतर्कता के
अभ्यास से
जब
सहज हो जाए
एक सौम्य चौकन्नापन 

जाग्रत रह पाता है
एक बोध दीप
अंतस में

जो छिटकाता है
प्रेम और शांति
का उजियारा 



अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
मंगलवार, २७ अप्रैल २०१० 
सुबह ७ बज कर ११ मिनट 

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