Saturday, April 17, 2010

जब करुणा करे विस्तार


चेतना की झील में
आलोडन विलोडन 
के बाद
माखन सा जो निकला 
निथर कर ,

उसे लेकर
विस्तार तक पहुँचाने 
चला आया 
उन्नत शिखर पर,

आश्वस्त, स्थिर और 
प्रेमांकित होकर
क्षुद्र भाव बिसराया 

पर जब निर्मल मन 
अखंड चेतना का 
सत्कार करने आया

अमन होने का अनाम भय 
देने लगा
मन को फिर 
क्षुद्रता का उपहार 

2
उन्नत शिखर तक आकर
जब करुणा करे विस्तार

अपनी हर एक वृत्ति तक
पहुँचना चाहिए 
आलोकित विस्तार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर 56 मिनट
शनिवार, १७ अप्रैल २०१०




1 comment:

Smart Indian said...

जैसी सुन्दर कविता वैसा ही चित्र. धन्यवाद!

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