वो सारे क्षण जो
घेरा डाल कर
कसते थे शिकंजा
रोक सा देते थे
साँसों का रास्ता
वो सारे क्षण
जिनमें विस्मृत रही
अंतस की आभा
जिनमें झांकती रही
विवशता की
असहनीय अनुभूति
उन सबके पार
निकल पाया
बिना किसी स्थाई चोट के
जिस करुणामय के कारण
क्षणों की श्रंखला के साथ
मुझे बनाने वाले
उस गुह्य सृष्टा को
समर्पित कर
ताज़े शब्द सुमन
प्रस्तुत हूँ
मंगल भाव लेकर
सत्कार करने
एक नए दिन का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ बज कर ४२ मिनट
शुक्रवार, १६ अप्रैल 2010
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