कभी कभी
सचमुच कोई विचार
हमारे भीतर
एक वटवृक्ष की तरह
फैलने की प्रक्रिया
शुरू कर देता है जब
कहीं से आ जाती है
श्रद्धा की नमीं,
कल्याण पथ पर होने का
पावन ताप
और
सहज छिटक आता है
प्रसन्नता का उजियारा
२
तब भी
यह देख पाना संभव नहीं होता
कि इस विचार ने कैसे चुन लिया हमें
और प्रश्न यह भी है कि
हम चुनते हैं विचार को
या
विचार चुनता है हमें
३
विचार और सपने में
क्या अंतर है
शायद ये कि
जो सपना
मूर्त रूप तक
पहुँचने के लिए
स्पष्ट साधन
या
प्रखर ऊर्जा
अपने साथ लेकर आता है
ऐसा विचार बन जाता है
जो हमें इस तरह अपनाता है
कि
विचार नहीं रहता
हमारा जीवन बन जाता है
४
सारा जीवन
जाने अनजाने
विचार ही है किसी का
जिसका विचार है जीवन
उस तक
पहुँचने की
नयी सीढियां बनाने का सपना
खिलता है
हमारे भीतर
एक अनूठी विशिष्टता लेकर
और तब
जब मिट जाता है
गति और स्थिरता
का भेद
शायद हम पा लेते हैं
अपने आप को
इस तरह कि फिर
नहीं रह जाता शेष
और कुछ भी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर १८ मिनट
१५ अप्रैल २०१०
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