कविता अंतिम सत्य नहीं है
उस तक पहुँचने के
नन्हे नन्हे प्रयास हैं
२
अंतिम सत्य
वह नहीं
जो यात्रा के समापन पर मिले
अंतिम सत्य वो
जिसके बिना
हो ही नहीं सकती
शुरुआत यात्रा की
३
प्रारंभ, मध्य और अंत में ही नहीं
समग्र सत्य वो
जो बना है
प्रारम्भ से पहले
और
अंत के बाद भी
४
आदि-अंत रहित जो है
वो ही है
मेरा आत्म-सखा
अपने इस
चिरंतन सखा के साथ
खेल में
जीतने के लिए
मुझे सिर्फ इतना करना है
कि
याद रखूँ उसे
और
वो तभी जीत सकता है
जब कि जीत जाऊं मैं
इस तरह
ये सारा खेल बना कर
बड़ी उदारता से
ये निश्चित कर दिया है उसने
की इस खेल में
जीतना मुझे ही है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अप्रैल २०१०
मंगलवार, सुबह ४ बज कर ४६ मिनट
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