Tuesday, April 13, 2010

चिरंतन सखा के साथ


कविता अंतिम सत्य नहीं है
उस तक पहुँचने के
नन्हे नन्हे प्रयास हैं

अंतिम सत्य 
वह नहीं 
जो यात्रा के समापन पर मिले
अंतिम सत्य वो 
जिसके बिना
हो ही नहीं सकती
शुरुआत यात्रा की 

प्रारंभ, मध्य और अंत में ही नहीं
समग्र सत्य वो
जो बना है
प्रारम्भ से पहले 
और
अंत के बाद भी


आदि-अंत रहित जो है
 वो ही है
मेरा आत्म-सखा

अपने इस 
चिरंतन सखा के साथ
खेल में
जीतने के लिए
मुझे सिर्फ इतना करना है
कि 
याद रखूँ उसे 
और
वो तभी जीत सकता है 
जब कि जीत जाऊं मैं 

इस तरह
ये सारा खेल बना कर 
बड़ी उदारता से
ये निश्चित कर दिया है उसने
की इस खेल में
 जीतना मुझे ही है 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अप्रैल २०१० 
मंगलवार, सुबह ४ बज कर ४६ मिनट

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