Monday, April 12, 2010

अपनेपन की रसमयी गाथा


 1
सन्दर्भ पगडण्डी हैं, खिड़की हैं, द्वार हैं
सन्दर्भों में हमारे विस्तार की झंकार है 

जो अपने जन्म के मूल से जुड़ पाए 
स्वतंत्रता उसी का जन्मसिद्ध अधिकार है

2
हम देहरूप में कहाँ से आते हैं
देह छोड़ कर कहाँ लौट जाते हैं

सारा सत्य क्या इतना ही है
जितना हम देख-सुन पाते हैं?

३ 
विस्मय सा जो उगता है हर दिन के साथ
दिन के कोलाहल में खो जाती इसकी बात 


नयेपन की तलाश है 
पर पुरातन से चिपकने का अभ्यास
काल-खंड में मिट नहीं पाती
कालातीत के लिए हमारी अनवरत प्यास 

ना शब्द में
ना लय में
ना विचार में
मुझे
बंधना है
बस प्यार में

प्यार वो, जो मुक्ति अपने साथ लाता है
प्यार वो, जो उल्लास से भर जाता है
प्यार वो, जो इस तरह अपनाता है
कि कण कण नूतनता से निखर जाता है

६ 
प्यार के अनंत आयाम है
वही राधा, वही श्याम है

प्यार अपेक्षा का नहीं
समर्पण का नाम है

अर्पण करने की कला भी प्यार ही सिखाता है
प्यार उसे अपनाता है, जो प्यार को अपनाता है

चाहे मानो या ना मानो, सृष्टि जो है हमारी 
और कुछ नहीं, अपनेपन की रसमयी गाथा है 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर २० मिनट









के तार हैं

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