अब छोड़ दिया है
जोड़- तोड़
खोने-पाने का
जो करता हूँ
अर्पित करते हुए तुम्हें
मान लेता हूँ
मिल गया मुझे
अनमोल पारिश्रमिक
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खींच तान से परे
एक निर्मल तनाव
उंडेलता है प्रचुर माधुर्य
जिसमें छू पाता
अपने होने की सार्थकता
सहसा
कृतज्ञता से भर कर
किसी क्षण
नए सिरे से
अर्पित करता अपने
सभी संकल्प
तुम्हारे नाम
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ बज कर १८ मिनट
अप्रैल ८, 2010
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