Tuesday, April 6, 2010

शब्द के साथ चलते मौन से


ना जाने किसने उठाई थी आपत्ति
पहले से लिखी कविता मत लिखो
पहले से सोचा हुआ विचार नहीं
ताज़ा दूध दुहने की तरह
तल्लीन होकर
करो आव्हान
अभिव्यक्ति की नयी दुग्धधार का

सुनो
शब्द प्रवाह का
महीन, सूक्ष्म संगीत

देखो
भाव का शब्द दर्पण में
अपने को निहारना

झूमो
उस क्षण में
जिस क्षण
दृष्टा कहे 'हाँ, अब ठीक है'

ठीक होना पूर्णता है
शब्द
रिक्तता से पूर्णता तक की यात्रा
के साक्षी है
वे दर्ज भी करते हैं
कुछ संकेत
पर याद रहे
असली कविता तुम्हारे अन्दर ही है
शब्द के साथ चलते मौन से
जब मिल जाता है तुम्हारा मन
दिखाई देता है जो 'विशुद्ध सत्य'
वही सच्ची कविता है
बाकी जो है
वो कलेवर है

पर कलेवर भी अहम है
जैसे 'देह' महत्वपूर्ण है
'आत्मानुभूति' के लिए


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर २० मिनट
मंगलवार, ६ अप्रैल २०१०

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