लो फिर आ गया दिन
और तैयार नहीं हो तुम
हाँ नींद लेकर स्वस्थ हो गए
स्नान कर पहन लिए नए वस्त्र
पर
कहाँ है वो परिधान
जो पहनाओगे तुम
इस वस्त्रहीन दिन को
सुनो
दिन के वस्त्र
जो बनते हैं तुम्हारे कर्म से
उनसे दिन नहीं ढकता
ढका जाता है
तुम्हारा खालीपन
और
यह तो जान ही गए हो
अब तक
तुम्हारे मन में
हर दिन उगती है
खालीपन की नयी फसल
२
यह खालीपन
अभिशाप नहीं वरदान है
हर दिन तुम्हें
नया होने का
एक और अवसर देता है
नया होना
पुराने का परित्याग किये बिना
इस तरह स्वीकारना है
नए दिन को
कि मुक्ति की गोद में
सहेज सको
आने वाले हर पल को
३
लो फिर आ रहा है नया दिन
अब भी तैयार हो सकते हो
तैय्यारी ऐसी कि
एकमेक हो सतत मुक्ति के साथ
हो रहो प्रस्तुत
दिन की हर बात के लिए
खालीपन नहीं पूर्णता लेकर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर १७ मिनट
सोमवार, अप्रैल ५, २०१०
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