वह कुछ, जो सोच से परे हो पाता है
उसी में अनंत सौंदर्य निखर आता है
जो वैर रहित, शुद्ध जीवन को गाता है
वो चिर आनंदित, सबको अपनाता है
अनुकूलता का अर्थ तो बदल बदल कर
जहाँ है, वहीं हमें खिन्न कर जाता है
प्रसन्न होने की कला सिखाने वाला
अनुकूल-प्रतिकूल से परे ले जाता है
धरा के अंतिम छोर तक पहुंचा कर
गगन को स्पर्श करना सिखाता है
टूट टूट कर अटूट तक पहुँचते हम
हमारी साँसों में अमृत की गाथा है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ५३ मिनट
३ अप्रैल २०१०, शनिवार
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