Friday, April 2, 2010

अनंत की आहट


बस यूँ होता है
एक दिन
आ जाती है 
एक श्रंखला की अंतिम सांस 
बिना किसी पूर्व घोषणा के
एकाएक

लुप्त हो जाती
एक जाग्रत भाव पुंज की धारा 
उतनी उतनी कमी खलती 
जितना जैसा रिश्ता रहा हमारा

एक तरह से
ख़त्म हो जाती एक कहानी
पर बनी रहती
जीवन की अनंत रवानी

कोई कोई साँसों के चलते 
अमृत सिन्धु की कल-कल सुन पाए
जो सुने, उसके अंतस में
परमानंद का सागर लहराए 

साँसों में सजे आत्मीयता 
आनंद से सतत प्यार बह आये
सूक्ष्म हो संवेदना 
अनंत की आहट को सुन पाए 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर १८ मिनट 
शुक्रवार, २ अप्रैल 2010



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