Thursday, April 1, 2010

153-अपार विस्तार का एक द्वार


एकाकीपन सा जो चलता है साथ साथ
हज़म कर लेता है हर घटना का स्वाद

ये जो अक्षय साथ की मांग करता है
इसको तृप्त नहीं कर पाता कोई संवाद

यह जो चिर कुंवारापन है मन का
कभी कभी सुनाता है अनंत का नाद 

मैं करने या होने वाला हूँ ही नहीं 
ना मैं किसी के पीछे, ना किसी के बाद

अपार विस्तार का एक द्वार है मुझमें
उस तक पहुंचाती है, किसी की याद 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ४० मिनट
१ अप्रैल २०१०, गुरुवार

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