दूर तक देख नहीं सकते हम
पास देखा भी नहीं करते हम
बिना देखे ही सफ़र जारी है
और अज्ञात से ही डरते हम
जिंदगी भर तलाश है जिसकी
उसकी आवाज़ से मुकरते हम
आईने पर भले हो धूल बहुत
बिना देखे बहुत संवरते हम
और कुछ ऐसे संवर जाते हैं
प्यार के नाम पर झगड़ते हम
सिलसिला आग का चला ऐसा
घर में बैठे हुए भी जलते हम
कौन कैसे कहाँ उठाये नज़र
अब इसी बात को कुतरते हम
रंग काला सा लगा चश्मे पर
अच्छे अच्छों को कोसा करते हम
फैसला लाठी का ही होता है
इस पे बहुमत का नाम धरते हम
आंधियां उनके हाथ में देकर
घोसले टूटने से डरते हम
अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
८ बज कर ५८ मिनट
बुधवार, मार्च ३१, २०१०
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