क्यूं ऐसा होता है
सब कुछ सीखा-समझा
रख कर किसी दरख़्त के नीचे
सुस्ताने के बाद
चलते समय
वहीँ छूट जाती है
जन्म भर की पूंजी
और कुछ दूर चलने के बाद
जब धूप में जलते हैं पाँव
हवा में से निकल छू लेता है
कोई सनसनाता सांप
घबरा कर जब डर जाते हैं
अपने आपको
पूरी तरह विवश पाते हैं
तब याद आता है
कहीं खो गया है
'आस्था और आश्वस्ति को खज़ाना'
अब जंगल के बीच
क्या पलट कर
ढूंढें वो पेड़, जहाँ सुस्ताये थे
जहाँ जन्म भर की पूंजी भूल आये थे
या
जहाँ हैं
वहीँ बैठ कर अपने साथ
जाग्रत करें
अपने भीतर
नए सिरे से
शाश्वत संबल देती मौलिक बात
जन्म भर की जो पूंजी है
उसे साँसों में सहेजने का हुनर भी
होगा कहीं ना कहीं
साँसों में ही छुपा हुआ
ये सोच कर जो मुस्कुराता है
वो हर सांप के डर से बच पाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर 21 मिनट
शुक्रवार, मार्च १९, २०१०
No comments:
Post a Comment