Saturday, March 20, 2010

यह एक मस्ती सी


पेड़ की छाँव सा
एक घना साया सुरक्षा का
चलता है
कृपा की छतरी बना
हमारे ऊपर
जो 
दिन रात

उसको लेकर
चलने वाले
अदृश्य हाथ
जिस अनंत के हैं
उसका उद्देश्य क्या है
हमें बनाने, बचाने, चलाने के पीछे


जीवन में
जो कुछ होता है
या नहीं भी होता है जो
इस सबके पीछे
कुछ तो होगा

वह कुछ 
जो गोपनीय है
जिसका परिचय होता है
मुखरित
हमारे द्वारा

क्या हम ठीक ठीक तरह से
दे पाते हैं
परिचय उसका

कभी कभी
एक बालक
बना कर एक पहिया सा
सड़क पर मिले 'तार' से
जोड़ता है इसे
एक दूसरे 'तार' से
ऐसे की
एक पहिये की गाडी सी चला
भागता है जब वो 
पंख लग जाते उसकी मस्ती को

वो पहिये का खेल बनाने की सूझ
वो मस्ती
कहाँ से आती है उस अबोध में

कितना कुछ करवा लेती है
यह एक मस्ती सी
बैठ कर साँसों में

कुछ कुछ बनाते
दूर दूर तक भागते

एक दिन हाँफते हुए
सोचते हैं
चले कहाँ से थे

और कभी कभी
ये भी आ जाता है ख्याल
ये चलना किसके लिए था ?


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर २ मिनट पर
मार्च २०, २०१० शनिवार

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