Tuesday, March 16, 2010

प्रार्थना जगत कल्याण की

१ 
किसी एक क्षण
अचानक
लगता है
सारे अच्छे अच्छे काम कर दें झटपट

पर धैर्य से 
तैयार हुए बिना
ले लेती है सोच
एक अलग दिशा, एक नयी करवट


लो जो कुछ भी है
जितना भी है
अब तक का सहेजा हुआ 'मैं'
अर्पित करता हूँ तुमको
ओ प्रखर सूर्य!

अपने आलोक से
नहला कर
बना दो मुझे
ऐसा कि
किरणों के साथ
दौड़ दौड़ कर
पहुंचा सकूं
सन्देश तुम्हारा
धरती के इस छोर से
उस छोर तक


इस बार 
ये प्रार्थना है
कि अगली बार जब
करूं प्रार्थना

ओ परमात्मा
अपने लिए 
कुछ भी ना मांगू

 प्रार्थना जगत कल्याण की 
विश्व शांति की
ऐसे फूटे मेरी साँसों से
जैसे 
कभी अपने लिए
गाडी, बंगला, नौकरी आदि के लिए
रहा होऊंगा प्रार्थी
सामने तुम्हारे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर ११ मिनट
मंगलवार, १६ मार्च २०१० 

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