Monday, March 15, 2010

जो अनित्य है

(स्वामी श्री ईश्वरानंद गिरिजी महाराज, संवित साधनायन,       आबू पर्वत - चित्र अमित गांगुली )


मन सुन्दर बन, कोमल पथ चुन
पहुँच गए जो, उनका स्वर सुन

दिव्य धरोहर, साथ चले है
इसे देख कर कर्म सभी बुन

शरण श्याम की जब पाए तू
कण कण में आनंदित रुनझुन

जो छूटे है, उसे छोड़ कर 
जो अनित्य है, उसे नित्य गुन



कविता सहज ही
चढ़ कर बढ़ने लगती है
प्रार्थना की पगडंडी पर

नहीं देखती मेरे दिखाए
नहीं सहेजती चिंता के साए

कहती है
मैं शाश्वत की सखी हूँ
नश्वर की दावत, मुझे ना भाये

मैं तो अनुसरण करता हूँ
पहुँचता वहां, जहाँ कविता ले जाए


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर ५० मिनट
मार्च १५, २०१०

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