सबसे हट कर
एक भाव यह शुद्ध परम अनुपम आनंदित
गहन शांति का बोध अनवरत
प्रेम उजागर
रसमय, चिन्मय
अहा
मुक्ति की एक छुअन यह
जैसे कोई सहज अपने
अद्रश्य करों में मुझे उठाये
दूर गगन तक लेकर जाए
जहाँ
किरण के साथ मेरे अंतस से
बह कर प्रेम
धरा को छू छू आये
नए सिरे से
वैभव अतुलित
धरती के कण कण तक जाए
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मार्च १४, २०१० रविवार
सुबह ९ बज कर १५ मिनट
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