लौट कर आना
सचमुच कभी होता नहीं
जिसे हम लौटना मानते हैं
वो दरअसल एक नयी जगह पर
पहुंचना होता है
जिसके साथ जुडी होती है
पहचान पुरानी
२
जगह बदलती है
हम भी बदलते हैं
सन्दर्भ भी बदल जाते हैं
इस तरह हम
जाने अनजाने
लौटते नहीं
आगे निकल आते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ मार्च २०१० गुरुवार
सुबह ७ बज कर ५३
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