Thursday, March 4, 2010

जिसे हम लौटना मानते हैं


लौट कर आना 
सचमुच कभी होता नहीं
जिसे हम लौटना मानते हैं
वो दरअसल एक नयी जगह पर
पहुंचना होता है
जिसके साथ जुडी होती है
पहचान पुरानी


जगह बदलती है
हम भी बदलते हैं
सन्दर्भ भी बदल जाते हैं
इस तरह हम
जाने अनजाने 
लौटते नहीं
आगे निकल आते हैं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ मार्च २०१० गुरुवार
सुबह ७ बज कर ५३

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