लो मैंने तो दे दिया तुम्हे
एक और नया दिन
जानता हूँ, बढ़ नहीं पाते
इस उपहार के बिन
पर मेरे प्यारे
मेरे दुलारे
अब देखना है
इस उपहार से तुम क्या बनाते हो
क्या क्या अनुभव लेकर
दिन के उस छोर तक आते हो
ये 'interactive' उपहार है
इसको तुम्हारी समझ की दरकार है
तुम सजग रह कर जाने
तो हर क्षण में आनंद की रसधार है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, ५ मार्च २०१०
सुबह ७ बज कर ४५ मिनट
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