Sunday, March 21, 2010

144- जो सहज लगता है

(किरण में भी है पहुँच की प्यास    चित्र - अशोक व्यास )

थप थप करती है चाह जब
खोल देता 
द्वार कोई
समय की दीवार में

इस पार चला आता 
अदृश्य रूप से
एक 'कुछ'
जिससे पूरी होती चाह

एक तरफ 'कामना मुक्त' होने का दबाव
दूसरी तरफ
चाह को 
प्रखर और पावन करने का प्रशिक्षण

ऐसा की 
दूर हिमालय की गुफा में बैठ कर भी
करता रहा 
संचार शांति का
हवाओं में
कोई तपस्वी


यह सब 
जो सहज लगता है
अनायास आ जाता 
हमारी झोली में
व्यवस्था के उपहार सा

ये सब
हमारे जीवन को 
सजाता, बनाता, 
मनोरंजन और प्रेम का रस बढाता

इस सबके पीछे 
जितने जाने-अनजाने लोगों का
योगदान है
उनके प्रति अपनी 
कृतज्ञता ज्ञापित करने

आओ
आज पूरी निष्ठा से
जहाँ भी हैं
वहां से 
पूरी निष्ठा और तन्मयता के साथ 
हम भी
भेजें सन्देश प्रेम और शांति का
सारे वायुमंडल में 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शाम ५ बज कर ०३ मिनट
रविवार, मार्च २१, 2010

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया!

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

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