Monday, March 22, 2010

145-एक ये नरम दुशाला

(विश्वयोगी विश्वमजी महाराज के साथ अशोक व्यास, Virginia, Sept 2007)

ठण्ड से बचाने वाला
एक ये नरम दुशाला
उस दिन तुमने जब
मेरे काँधे पर डाला

उसके साथ ऊष्मा थी सम्मान की
तुमारे वात्सल्यमयी ध्यान की
(हर पुरस्कार से बढ़ कर निश्छल प्यार)
एक दुशाले में  तुम्हारी स्मृति के साथ
उभर आती कैसे, एक कवच की सी बात 
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विपरीत दिशा का टिकिट
1

सुरक्षा बाहर की, देती है व्यवस्था
कोई अंतर्राष्ट्रीय सूझ-बूझ की कथा 
पर जब तक अंतस हो असुरक्षित
जीवन हो जाता है, जैसे एक व्यथा

2

बाहर भीतर, सुरक्षा का एक ही है आधार
कहने वाले इसे कह सकते हैं निश्छल प्यार
पर हो ये गया है, प्रतिस्पर्धा के खेल में
हो नहीं पाते हम, इसे मानने को तैयार

3
अक्सर हमें जिस दिशा में जाना होता है
हम उससे विपरीत दिशा का टिकिट कटाते हैं

अपने गंतव्य से दूर जाने वालों के साथ
बैठ कर गतिमान होते, भ्रमित हो जाते हैं

फिर किसी एक पल, अपनी गति से घबराते हैं
संकोच में घिर कर, अपने लक्ष्य से दूर हो जाते हैं

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, मार्च २२, २०१०
सुबह ६ बज कर २६ मिनट

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